Attention (अवधान)
चेतना व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है, चेतना के किसी वस्तु पर केन्द्रित होने को अवधान कहते है।
किसी वस्तु पर चेतना के केंद्रित करने की मानसिक प्रक्रिया कोअवधान कहते है। चेतना के कारण ही उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है।
डम्बिल के अनुसार- "किसी दूसरी वस्तु की अपेक्षा किसी एक वस्तु पर चेतना का केेंद्रकरण अवधान है।"
रॉस के अनुसार- " अवधान विचार की वस्तु को मस्तिषक के
सामने स्पष्ट रूप से लेन की प्रक्रिया है।
रामनाथ शर्मा केअनुसार-" ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को उसके वातावरण मे विद्यमान उद्दीपको मे से अपनी रुचि एवं अभिवृत्ति के अनुसार कोई भी विशिष्ट उद्दीपक चुुुनने
के लिये विवश करता है"।
अवधान की विशेषता-
- मानसिक प्रतिक्रिया- मस्तिस्क के अंतर्गतआने वाली सारी प्रतिक्रिया अवधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
- चयनात्म स्वरूप- अवधान की एक मुख्य विशेषता यह है की अवधान एक मानसिक प्रक्रिया है। वातावरण मे उपस्थित सभी वस्तुओं की और व्यक्ति का ध्यान नही जाता है । वह अपनी आवश्यकता और रूचि के अनुसार एक या एक से अधिक वस्तुओं को चुनकर उसकी और ध्यान देती है। जैसे - भूखे का ध्यान भोजन की और होना ।
- चेतन केंद- अवधान मे चुने हुए उद्दीपन को चेतना केन्द्र मे लाया जाता है।
- प्रयोजनता- अवधान एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है। इसके द्वारा व्यक्ति अपने उद्देश्य को पूरा करता है। अथवा ऐसा कहे की वह अपने उद्देश्य से प्रभावित होकर किसी खास वस्तु की और ध्यान देता है।
- तत्परता - वातावरण मे जो भी कुछ हो रहा है, उसे अपनाने की तत्परता होनी चाहिए एवं उसे सीखने के लिए तैयार होना चाहिए।
- निश्चित समय सीमा- अवधान की एक विशेषता यह है की व्यक्ति सभी उत्तेजना को अपने ध्यान केंद्र मे लाने मे समर्थ नही होता है , जिसके कारण अवधान की सीमा निश्चित होती है।
- अस्थिरता- ध्यान प्रक्रिया इतनी चंचल होती है की एक वस्तु पर अधिक समय तक नही टिकती है।
- अनुवेशनात्मक- अवधान की एक विशेषता अनुवेशन भी है।
- गतियों का समायोजन - अवधान की एक विशेषता शारीरिक समायोजन है। जिस वस्तु की और हम अपना ध्यान देते है, उस वस्तु की और हमारा ध्यान भी केंद्रित हो जाता है। जैसे- बिल्ली चूहे पर ध्यान एक विशेष मुद्रा मे लगती है।
- विश्लेषणात्मक तथा सनश्लेष्णात्मक - इसके अंतर्गत किसी वस्तु के बारे मे देखकर विश्लेषण तथा संश्लेषण करके उसके बारे मे बताते है।
अवधान का वर्गीकरण- दो
1 अनैच्छिक अवधान
i) बाध्य अनैच्छिक अवधान।
ii) सहज अनैच्छिक अवधान
2 ऐच्छिक अवधान
i) अविचारित ऐच्छिक अवधान
ii) विचारित ऐच्छिक अवधान
1 अनैच्छिक अवधान - इस प्रकार का अवधान जन्मजात अभिरुचियो पर निभर होता हैै इसमें ध्यान देने वाले व्यक्ति की
इच्छा, अभिरुचि , उद्देश्य और प्रेरणा का महत्व नही होता। जैसे ध्वनि
i) बाध्य अनैच्छिक अवधान - इस प्रकार के अवधान का कारण व्यक्ति की मूल प्रव्रिति है। जैसे- भूख
ii) सहज अनैच्छिक अवधान- वह अवधान जो व्यक्ति की भावना से सम्बंधित होता है और इसमें इच्छा की आवश्यकता नही होती है। जैसे - माता द्वारा बालक की देखभाल
2 ऐच्छिक अवधान-
ऐच्छिक अवधान अर्जित अभिरुचियों पर आधारित होते है। इसमें हम अपनी इच्छा से जानबूझ कर किसी वस्तु पर चेतना को केंद्रित करते है। जैसे - किसी भी काम को करने के लिये योजना बनाना।
i) अविचारित ऐच्छिक अवधान- इस प्रकार के अवधान मे व्यक्ति को ध्यान लगाने हेतु विशेष् प्रयास नही करना पड़ता है , और जैसे जैसे आदत पड़ जाती है ध्यान लगाना आसान हो जाता है।
ii) विचारित ऐच्छिक अवधान - इसमें किसी बात पर ध्यान लगाने के लिए बार बार प्रयत्न करना पड़ता है। जैसे - कुछ पुराना पढ़ा हुआ।
अवधान की शैक्षिक उपाध्यता/ महत्व
- कक्षा मे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया मे छात्रो का ध्यान आकृष्ट रखना चाहिए।
- शिक्षक को शिक्षण के दौरान एक स्वस्थ्य वातावरण तैयार करना चाहिए ताकि छात्र अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा सके ।
- शिक्षक को एक ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जो विकर्षण से दूर हो।
- शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में छात्रो का ध्यान केंद्रित करने हेतु अभिप्रेरित करना चाहिए।
इस प्रकार अवधान की समझ शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करती है।
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