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Maturation(परिपक्वता)

Maturation(परिपक्वता)

परिपक्वता शरीर की आंतरिक व्यवस्था के कारण उत्पन्न स्नायुओ
और मांसपेशियों की प्रौढ़ता और दृढ़ता है जिस पर बाह्य वातावरण का प्रभाव नही पड़ता है। 
   बाल विकास के क्षेत्र मे सर्व प्रथम जेसेल 1940 मे परिपक्वता शब्द का प्रयोग किया। गिसेल का यह विचार था की विकास की निश्चित अवस्थाओ मे कुछ निश्चित स्नायुविक और मांसपेशीय परिवर्तन होते रहते है।
           उसके बाद जीन पियाजे ने परिपक्वता को आधुनिक मे बताया।
1 परिपक्वता एक नर्संगिक क्रिया है।
2 बाह्य उद्दीपको की आवश्यकता नही है
3 यह मानव की अन्तः शक्तियों का विकास है।

बिग्गी एवं हंट के अनुसार-  
"परिपक्वन एक विकासात्मक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति समय के साथ साथ उन सभी विशेषताओं और गुणों को ग्रहण करता है जिनकी नीव उसके गर्भ मे आने के समय ही उसकी कोशिकाओं मे रखी जा चुकी है। "

सेन्फोर्ड के अनुसार-
"परिपक्वता का तातपर्य उस विकास से है जो व्यवहार के परिवर्तनों के रूप में वंश परम्परा के कारण होता है"।

परिपक्वता के चरण- 
1 शैशवावस्था
2 बाल्यावस्था
3 किशोरावस्था
4 प्रौढ़ावस्था

शैशवावस्था(0-4)वर्ष
  • शिशु का विकाश बहुत तीव्र गति से होता है।
  • शिशु अपरिपक्व होते है।
  • दुसरो पर निर्भर होते है।
  • किसी भी कार्य की दुहराने की प्रव्रिति होती है।
  • स्व प्रेम की भवना होती है।
  • नैतिक भावना के विकास मे कमी होती है।
  • दोस्तों के साथ स्वयं के साथ खेलने की प्रव्रिति होती है।
  • शैशवावस्था के अंत मे समाजिक विकास आरम्भ हो जाता है।
बाल्यावस्था(4-13) वर्ष
  • बालक की जिज्ञासा बढ़ जाती है।
  • स्वम् पर निर्भरता का विकास होता है।
  • बालक मे कुछ स्थिरता आ जाती है।
  • निर्माण के कार्यो मे जड़ रूचि लेता है।
  • दोस्तों के साथ खेलने में  अधिक समय व्यतीत करता है।
  • समाजिक विकास होता है।
किशोरावस्था(13-20)वर्ष
  • दोस्तों के साथ समय बिताना इन्हें अच्छा लगता है।
  • ये अपनी पहचान को प्राप्त करना चाहते है।
  • शारीरक परिवर्तित
  • दिवास्वपन
  • समायोजन का अभाव 
  • स्वतंत्रता के प्रति जागरूक 
  • अधिकतम मानसिक विकास
  • धार्मिक भाव
  • सामाजिक सेवा का भाव
  • आत्म सम्मान 
  • अपराधी प्रव्रिति का जन्म
  • व्यवसायिक चयन के प्रति जागरूक
युवावस्था (20-above)
  • जिम्मेदारियो का आभास होना
  • भावनाओ का नियंत्रण
  • व्यवहार में लचीलापन
  • धैर्य के साथ काम करना
  • जरूरत और इच्छा मे भेद की पहचान
  • गुस्से तथा व्यवहार मे नियंत्रण
  • नकारात्मक पुनर्बलन को स्वीकार करते है तथा स्वम् में बेहतर करने का प्रयास करते है
परिपक्वता के प्रकार
1 शारीरिक परिपक्वता- ऊँचाई तथा भार मे परिवर्तन को आसानी से देखा जा सकता है। जैसे आवाज में परिवर्तन 

2 सामाजिक परिपक्वता - सामाजिक परिपक्वता के परिवारीक ,आस पड़ोस पर निर्भर करता है। जैसे सामाजिक नियम और उसका पालन

3 संवेगिक परिपक्वता- यह परिपक्वता अपने संवेग के नियंत्रण से सम्बंधित है। जैसे बच्चे अपने संवेगों को नियंत्रित नही कर पाते

4 बौद्धिक परिपक्वता- बौद्धिक परिपक्वता बुद्धि से परिपक्व हो जाना है । जैसे बच्चे जटिल चीजो को नही समझ पते 'ब्लैक होल'

5 मिश्रित परिपक्वता- पूरी तरह से परिपक्व होना शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक,सामाजिक सभी से परिपक्व होना मिश्रित परिपक्वता कहलाती है।

परिपक्वता का शिक्षा में महत्व
  • परिपक्वता की स्तरों की समझ शिक्षको को कब और क्या शिक्षण प्रदान करना है जानने में सहायक होते है।
  • यदि परिपक्वन के अनुसार अधिगम न हो तो समय और शक्ति का अपवय होता है।
  • अधिगम व परिपक्वन से व्यक्ति में हुए बदलावों की जटिलता की समझ शिक्षक को उसके शिक्षण को प्रभावशाली बनाने मे मदद करता है।
  • पाठ्यक्रम के चयन तथा शिक्षण विधियों के चयन मे सहायता प्रदान करता है।
इस प्रकार परिपक्वता की समझ शिक्षक के अधिगम कार्य करवाने के लिए आवश्यक है।


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