Thinking(चिंतन)
चिंतन एक मानसिक क्रिया है। यह अभिक्षमता समस्या समाधान की तरह है जो मनुष्यों को दूसरे जीवो से भिन्न बनाता है।
रॉस के अनुसार -" चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक वस्तुओ से संबंधित मानसिक क्रिया है ।"
गैरेट के अनुसार -" चिंतन एक प्रकार का अवक्त एवं अदृश्य व्यवहार होता है जिसमे सामान्य रूप से प्रतिको(बिंबो, विचारो , प्रत्ययों) का प्रयोग होता है।"
मॉहसीन के अनुसार -" चिंतन समस्या समाधान संबंधी अवक्त व्यवहार है।"
चिंतन की प्रकृति
- संज्ञानात्मक प्रक्रिया
- उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया
- समस्या समाधान व्यवहार
- मानसिक खोज
- प्रतिकात्क क्रियाएँ
- स्थानांतरण प्रव्रिति
1 छवि / बिम्ब/ प्रतिम - प्रतिमा किसी वस्तु या
क्रिया का मानसिक चित्र है । व्यक्ति अपने व्यवहारिक जीवन मे जिन वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण करता है उसकी प्रतिमाएँ उसके दिमाग में बन जाती है ।
ये बिम्ब या प्रतिमाएँ वास्तविक अनुभूतियों वस्तुओं तथा क्रियाओं के प्रतिक होते है।
2 अवधारणाएँ या संकल्पना - चिंतन हमेशा तभी मस्तिष्कमें अपना स्थान ग्रहण कर पाता है जब हम अवधारणाओ का प्रयोग करते है । अवधारणाओ के अभाव में हम चिंतन नही कर सकते है क्योंकि प्रत्येक वस्तु जो हमारे आस पास है , वह हमारे मस्तिष्क में अवधारणा के रूप में ही रिकॉर्ड हो रही है।
3 प्रतिक या चिन्ह - चिन्ह भी हमारे चिंतन का एक महत्वपूर्ण उपकरण है । उदाहरण के लिए राष्ट्रीय ध्वज , राष्ट्रीय जानवर , खेल का लॉगो अथवा संगठन आदि । हम इन चीजो का प्रयोग चिंतन में करते है।
4 भाषा - भाषा भी चिंतन का महत्वपूर्ण साधन है । जब कोई पढता है या शब्द , वाक्य या मुहावरे को सुनता है । किसी भी भाषा में हाव भाव को देखता है तो चिंतन शुरू कर देता है।
5 पेशीय क्रियाएँ - चिंतन एवं पेशीय क्रियाओं में एक महत्वपूर्ण सह सम्बन्ध होता है। जितना अधिक हम चिंतन में होते है पेशीय तनाव भी उतना ही बढ़ता जाता है।
6 मस्तिष्क - चिंतन मुख्य रूप से एक मानसिक क्रिया है एवं मस्तिष्क चिंतन हेतु आवश्यक साधन है।
चिंतन के प्रकार -
1. मूर्त चिंतन - यह चिंतन का सबसे सरलतम रूप है । किसी वास्तविक या मूर्त वस्तुओ तथा घटना पर आधारित होती है और यह बच्चों के चिंतन में मदद करती है।
2. अमूर्त चिंतन - यह प्रत्यक्ष बोधात्मक चिंतन अर्थात मूर्त चिंतन से उच्च स्तर का चिंतन है। वास्तविक विषयो या क्रियाओं के बोध की आवश्यकता नहीं होती । इसमें सम्प्रत्ययो या समान्यकृत विचारो का प्रयोग किया जाता है।
3. विचारात्मक तथा तार्किक चिंतन- यह अमूर्त चिंतन से उच्च स्तर का चिंतन है। इसका उद्देश्य जटिल समस्याओं का हल करना है। विचारात्मक चिंतन में मानसिक क्रिया 'प्रयत्न या भूल' का यांत्रिक प्रयास नहीं करती है। इस प्रकार के चिंतन में सूझ का समावेश होता है।
4. सृजनात्मक चिंतन - यह किसी व्यक्ति के कुछ नया बनाने या निर्माण करने की योग्यता से सम्बंधित है। यह पूर्व स्थापित नियमो से बाध्य नही होता है। यह वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता और कलाकार का चिंतन है।
सृजनात्मक चिंतन के तत्व -
- विचारों का समूह होना चाहिए।
- वास्तविक होना चाहिए
- विचारो में लचीलापन होना चाहिए
- अपसारी चिंतन
- आत्मविश्वास, मौलिकता
5. आलोचनानात्मक चिंतन - आलोचनात्मक चिंतन व्यक्ति के स्वम् के विचारो पूर्वाग्रहों एवं विश्वास से परे सत्य की खोज में मदद करता है ।
6. अनिर्देशित चिंतन - कभी कभी हम स्वम् को कुछ विशिष्ट प्रकार के चिंतन में व्यस्त पाते है, जिनका कुछ उद्देश्य नही होता है , उसे अनिर्देशित चिंतन कहते है। जैसे - दिवास्वपन , कल्पना भ्रम।
7. अपसारी चिंतन - अपसारी चिंतन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे किसी समस्या के कई विशिष्ट समाधान का सृजन किया जाता है।
इस प्रकार के चिंतन में एक प्रश्न के कई हल हो सकते है।
8. अभिसारी चिंतन - यह व्यवस्थित एवं तार्किक चिंतन है और यह बिलकुल भी सृजनात्मक नही है। अभिसारी चिंतन किसी भी समस्या का एक मात्र सवोत्तम समाधान को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। जैसे - MCQ
9. पार्श्विक चिंतन - यह वह चिंतन की विधि है जिसके द्वारा उलझी हुई समस्याओं का हल परम्परावादी विधि या तत्वों द्वारा प्राप्त किया जाता है । पार्श्विक चिंतन को सिखा जा सकता है।
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बहुत अच्छा प्रयास है बहुत अच्छा
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