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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Thinking(चिंतन)

Thinking(चिंतन) चिंतन एक मानसिक क्रिया है। यह अभिक्षमता समस्या समाधान की तरह है जो मनुष्यों को दूसरे जीवो से भिन्न बनाता है। रॉस के अनुसार -" चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक वस्तुओ से संबंधित मानसिक क्रिया है ।" गैरेट के अनुसार -" चिंतन एक प्रकार का अवक्त एवं अदृश्य व्यवहार होता है जिसमे सामान्य रूप से प्रतिको(बिंबो, विचारो , प्रत्ययों) का प्रयोग होता है।" मॉहसीन के अनुसार -" चिंतन समस्या समाधान संबंधी अवक्त व्यवहार है।"  चिंतन की प्रकृति संज्ञानात्मक प्रक्रिया उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया समस्या समाधान व्यवहार  मानसिक खोज प्रतिकात्क क्रियाएँ स्थानांतरण प्रव्रिति चिंतन के उपकरण- 1    छवि / बिम्ब/ प्रतिम -        प्रतिमा किसी वस्तु  या   क्रिया का मानसिक चित्र है । व्यक्ति अपने व्यवहारिक जीवन मे जिन वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण करता है उसकी प्रतिमाएँ उसके दिमाग में बन जाती है ।         ये बिम्ब या प्रतिमाएँ वास्तविक अनुभूतियों वस्तुओं तथा क्रियाओं के प्रतिक होते है। 2 अवधारणाएँ या संकल्पना -...

Maturation(परिपक्वता)

Maturation(परिपक्वता) परिपक्वता शरीर की आंतरिक व्यवस्था के कारण उत्पन्न स्नायुओ और मांसपेशियों की प्रौढ़ता और दृढ़ता है जिस पर बाह्य वातावरण का प्रभाव नही पड़ता है।     बाल विकास के क्षेत्र मे सर्व प्रथम जेसेल 1940 मे परिपक्वता शब्द का प्रयोग किया। गिसेल का यह विचार था की विकास की निश्चित अवस्थाओ मे कुछ निश्चित स्नायुविक और मांसपेशीय परिवर्तन होते रहते है।            उसके बाद जीन पियाजे ने परिपक्वता को आधुनिक मे बताया। 1 परिपक्वता एक नर्संगिक क्रिया है। 2 बाह्य उद्दीपको की आवश्यकता नही है 3 यह मानव की अन्तः शक्तियों का विकास है। बिग्गी एवं हंट के अनुसार-    "परिपक्वन एक विकासात्मक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति समय के साथ साथ उन सभी विशेषताओं और गुणों को ग्रहण करता है जिनकी नीव उसके गर्भ मे आने के समय ही उसकी कोशिकाओं मे रखी जा चुकी है। " सेन्फोर्ड के अनुसार- "परिपक्वता का तातपर्य उस विकास से है जो व्यवहार के परिवर्तनों के रूप में वंश परम्परा के कारण होता है"। परिपक्वता के चरण-  1 शैशवावस्था 2 बाल्यावस्था 3 किशोरावस्था 4 प...

Attention (अवधान)

Attention (अवधान) चेतना व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है, चेतना के किसी वस्तु पर केन्द्रित होने को अवधान कहते है।     किसी वस्तु पर चेतना के केंद्रित करने की मानसिक प्रक्रिया कोअवधान कहते है। चेतना के कारण ही उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है। डम्बिल के अनुसार- "किसी दूसरी वस्तु की अपेक्षा किसी एक वस्तु   पर  चेतना का   केेंद्रकरण अवधान है।" रॉस के अनुसार- " अवधान विचार की वस्तु को  मस्तिषक  के  सामने स्पष्ट रूप से लेन की प्रक्रिया है। रामनाथ शर्मा केअनुसार- " ध्यान एक  ऐसी   प्रक्रिया है जो व्यक्ति को  उसके वातावरण मे  विद्यमान उद्दीपको मे से अपनी रुचि   एवं अभिवृत्ति के अनुसार कोई  भी  विशिष्ट  उद्दीपक चुुुनने के लिये विवश करता है"। अवधान की विशेषता-  मानसिक प्रतिक्रिया- मस्तिस्क के अंतर्गतआने वाली सारी प्रतिक्रिया अवधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। चयनात्म स्वरूप- अवधान की एक मुख्य विशेषता यह है की अवधान एक मानसिक प्रक्रिया है। वातावरण मे उपस्थित सभी वस्तुओं की और व्यक्ति का ध्यान न...

Imagination(कल्पना)

Imagination(कल्पना) जब हम अपने पुराने अनुभवों के आधार पर किसी नवीन ज्ञानकी रचना करते है। नवीन रचना मन की रचनात्मक क्रिया का फल है। यह रचनात्मक क्रिया कल्पना कही जाती है। पुराने अनुभव यदि हमारे मन में ज्यों के त्यों उपस्थित रहती है तो वह कल्पना नही होती, कल्पना पुराने अनुभवों की सहायता लेकर नई रचना करना है। वुडवर्थ के अनुसार-" कल्पना एक मानसिक जोड़-तोड़ है।" मेकडूगल के अनुसार- " दूूूरस्थ्य या परोक्ष वस्तुओं के सम्बन्ध मे चिंता करना ही कल्पना है।" रायबर्न के अनुसार-"  कल्पपना वह शक्ति है जिसमेे हम अपनी प्रतिमाओ को देखते है।" कल्पना के प्रकार/ वर्गीकरण- विलियम मेकडूगल के अनुसार कल्पना दो प्रकार की होती है पुनरूत्पादक कल्पना और उत्पादक कल्पना, उत्पादक कल्पना दो प्रकार के होते है रचनात्मक कल्पना और सृजनात्मक कल्पना। 1 पुनरुत्पादक कल्पना- इस कल्पना मे स्मृति द्वारा गत  अनुभव  को ज्यों का त्यों कल्पना मे लाने का प्रयत्न किया जाता है।  2 उत्पादक कल्पना- इस प्रकार की कल्पना मे गत अनुभवों और कल्पनाओं को  एक नये क्रम मे या नविनता  के साथ प्रस्तुुुत  किया जाता है। ...

Fatigue(थकान)

Fatigue(थकान) थकान वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता घट जाती है, और वह किसी कार्य को ठीक प्रकार से नही कर पाता है। इस स्थिति को थकान कहा जाता है। इसका मुख्य कारण यह है की हम अत्यधिक् ऊर्जा का प्रयोग कर चुके होते है।   ड्रेवर के अनुसार:- " थकान का  अर्थ है - कार्य करने  में शक्ति के पूर्व व्यय के कारण कार्य करने की कम कुशलता या योग्यता।" थकान के लक्षण:-  मांशपेशियों मे दर्द होना। आँखों मे जलन होना। सर दर्द होना। बुखार। थकान की विशेषता:- किसी भी काम को निरंतर करने की क्षमता जब ख़त्म हो जाती है तो वह थकान कहलाता है। जब किसी व्यक्ति द्वारा थकावट दिखाई देती है तो वह किसी प्रकार का काम नही करना चाहता है। जब व्यक्ति के द्वारा की गई विभिन्न प्रकार की गतिधियाँ सही प्रकार से नही होती तब वह थक गया होता है जैसे- गुस्साना। थकान के प्रकार:-  1  शारीरिक थकान 2  मानसिक थकान 3  संवेगात्मक थकान 1 शारीरिक थकान:- इस  प्रकार का थकान शरीर से सबंधित होता है, जब  निरंतर  कार्य  करने से शरीर  की शक्ति कम हो जाती है और व्यक्ति केेे...

Variables ofteaching process( शिक्षण प्रक्रिया के चर)

Variables of teaching process( शिक्षण प्रक्रिया के चर) जब कोई भी कारक शिक्षा के क्षेत्र के शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है तो इसे चर कहते है। कार्टर वी. के शब्दकोष के अनुसार - " विभिन्न व्यक्तिगत केसो का अधिक संख्या में मूल्य ग्रहण करने को भी चर कहते है। कोई भी कार्य ,व्यवहार, कारक, अनुक्रिया या प्रक्रिया जो परिवर्तनशील है, वह चर कहलाती है। चर के प्रकार :-  1  स्वतंत्र चर 2  आश्रित चर 3  हस्तक्षेप चर   1 स्वतंत्र चर:- शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक , स्वतंत्र चर के रूप में कार्य करता है। वह छात्रों को अधिगम अनुभव प्रदान करने के लिये वीभिन्न प्रकार के कार्य करता है। इस प्रकार  शिक्षक एक स्वतंत्र  चर के रूप मे कार्य करता है। 2 आश्रित चर:- शिक्षण प्रक्रिया मे छात्र को आश्रीत चर की  संज्ञा दी गयी है क्योंकि शिक्षण प्रक्रिया में नियोजन, व्यवस्था व प्रस्तुतीकरण के अनुसार ही उसे सक्रिय रूप से कार्य करना पड़ता है। 3  हस्तक्षेप चर:- शिक्षण प्रक्रिया में पाठय् वस्तु , शिक्षण विधियां , शिक्षण युक्तियाँ तथा शिक्षण व्यूह रचनाये आदि हस्तक्षेप करते है।...

शिक्षण और अधिगम ( Teaching and learning)

शिक्षण और अधिगम की अवधारणा (Concept of teaching and learning )  जब शिक्षण होगा, तब अधिगम अधिगम भी होगा। इस प्रकार हम कह सकते है की शिक्षण संप्रत्यय अधिगम के बिना कभी पूर्ण नही कहा जा सकता है। शिक्षण और अधिगम दोनों एक दूसरे से भिन्न है।   थॉमस ग्रीन ने अपनी पुस्तक 'शिक्षण की क्रियाएँ' में स्पष्ट किया है की शिक्षण के बिना अधिगम नहीं की जा सकती , लेकिन अधिगम के बिना शिक्षण संभव है। क्रो व क्रो के अनुसार:- "    सीखना  आदतो,ज्ञान,और अभिवृत्तियो का अर्जन है।" स्किनर के अनुसार:- "  सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।" शिक्षण की प्रकृति:- शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है। शिक्षण एक योजनाबद्ध प्रक्रिया है। शिक्षण एक बहुआयामी प्रक्रिया है। शिक्षण कला के साथ साथ विज्ञान भी है। शिक्षण सम्प्रेषण है। शिक्षण मार्गदर्शन है। शिक्षण एक केंद्र निर्धारित प्रक्रिया है। अधिगम की प्रकृति:- अधिगम विकाश है। अधिगम परिवर्तन है। अधिगम अनुकूलन है। अधिगम नया कार्य करना है। अधिगम उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है। अधिगम अनुभवों का संगठन है। अधिगम जीवनभर चलता रहता है।...